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Sunday, January 9, 2011

एहसास

गहरे नीलम पानी में
फूल बदन लहरें थे
हवा के शबनम हाथ उन्हें छू जाते तो
पोर-पोर में खुनकी तैरने लगती थी
शोख़ सी कोई मौज शरारत करती तो
नाजुक जिस्मों नाजुक एहसासात के मालिक लोग
शाख़-ए-गुलाब की सूरत काँप उठते थे
ऊपर वस्त अप्रैल का सूरज
अंगारे बरसाता था
ऐसी तमाज़त
आँखें पिघल जाती थीं
लेकिन दिल का फूल खिला था
जिस्म के अन्दर रात की रानी महक रही थी
रूह मोहब्बत की बारिश में भीग रही थी
गीले रेत अगरचे धूप की हिद्दत पाकर
जिस्मों को झुलसाने लगी थी
फिर भी सब चेहरों पे लिखा था
रेत के हर ज़र्रे की चुभन में
फ़स्ल ए बहार के पहले गुलाबों की ठंडक है

ऐतराफ़

जाने कब तक तेरी तस्वीर निगाहों में रही
हो गई रात तेरे अक्स को तकते तकते
मैंने फिर तेरे तसव्वुर के किसी लम्हे में
तेरी तस्वीर पे लब रख दिए आहिस्ता से

एक मुश्किल

टाट के परदों के पीछे से
एक तरह बारह-तेरह साला चेहरा झाँका
वो चेहरा
बहार के फूल की तरह शफ़्फ़ाफ़
लेकिन उसके हाथ में
तरकारी काटते रहने की लकीरें थीं
और उन लकीरों में
बर्तन मांझने वाली राख जमी थी
उसके हाथ
उसके चेहरे से बीस साल बड़े थे

एक मंज़र

कच्चा-सा इक मकाँ, कहीं आबादियों से दूर
छोटा-सा इक हुजरा, फ़राज़े-मकान पर
सब्ज़े से झाँकती हुई खपरैल वाली छत
दीवार-ए-चोब पर कोई मौसम की सब्ज़ बेल
उतरी हुई पहाड़ पर बरसात की वह रात
कमरे में लालटेन की हल्की-सी रौशनी
वादी में घूमता हुआ इक चश्मे-शरीर[1]
खिड़की को चूमता हुआ बारिश का जलतरंग
साँसों में गूँजता हुआ इक अनकही का भेद !

शब्दार्थ:
  1. शरारती झरना

एक पैग़ाम

वही मौसम है
बारिश की हँसी
पेड़ों में छन छन गूँजती है
हरी शाख़ें
सुनहरे फूल के ज़ेवर पहन कर
तसव्वुर में किसी के मुस्कराती हैं
हवा की ओढ़नी का रंग फिर हल्का गुलाबी है
शनासा[1] बाग़ को जाता हुआ ख़ुशबू भरा रस्ता
हमारी राह तकता है
तुलू-ए-माह[2] की साअत[3]
हमारी मुंतज़िर है

शब्दार्थ:
  1. परिचित
  2. सूर्योदय
  3. समय या घड़ी

एक दोस्त के नाम

लड़की
ये लम्हे बादल हैं
गुज़र गए तो हाथ कभी नहीं आएँगे
इनके लम्स को पीती जा
क़तरा-क़तरा भीगती जा
भीगती जा तू जब तक इनमें नम है
और तेरे अन्दर की मिट्टी प्यासी है
मुझसे पूछ
कि बारिश को वापस आने का रास्ता कभी न याद हुआ
बाल सुखाने के मौसम अनपढ़ होते हैं

एक दफ़नाई हुई आवाज़

फूलों और किताबों से आरास्ता[1] घर है
तन की हर आसाइश देने वाला साथी
आँखों को ठंडक पहुँचाने वाला बच्चा
लेकिन उस आसाइश, उस ठंडक के रंगमहल में
जहाँ कहीं जाती हूँ
बुनियादों में बेहद गहरे चुनी हुई
एक आवाज़ बराबर गिरयः[2] करती है
मुझे निकालो !
मुझे निकालो !

शब्दार्थ:
  1. सुसज्जित
  2. विलाप

एक उलझन

रात अभी तन्हाई की पहली दहलीज़ पे है
और मेरी जानिब अपने हाथ बढ़ाती है
सोच रही हूँ
इनको थामूँ
ज़ीना-ज़ीना सन्नाटों के तहखानों में उतरूँ
या अपने कमरों में ठहरूँ
चाँद मिरी खिड़की पे दस्तक देता है

दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ

दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या-रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो

शोरिश से भागता हूँ दिल ढूँढता है मेरा
ऐसा सुकून जिसपर तक़दीर भी फ़िदा हो

मरता हूँ ख़ामुशी पर यह आरज़ू है मेरी
दामन में कोह  के इक छोटा-सा झोंपड़ा हो

हो हाथ का सिरहाना सब्ज़े  का हो बिछौना
शरमाए जिससे जल्वत ख़िलवत  में वो अदा हो

मानूस  इस क़दर हो सूरत से मेरी बुलबुल
नन्हे-से उसके दिल में खटका  न कुछ मिरा हो

आग़ोश में ज़मीं की सोया हुआ हो सब्ज़ा
फिर-फिर के झाड़ियों में पानी चमक रहा हो

पानी को छू रही हो झुक-झुक के गुल की टहनी
जैसे हसीन  कोई आईना देखता हो

फूलों को आए जिस दम शबनम  वज़ू  कराने
रोना मेरा वज़ू हो, नाला मिरी दुआ हो

हर दर्दमंद दिल को रोना मेरा रुला दे
बेहोश जो पड़े हैं, शायद उन्हें‍ रुला दे

अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं

अनोखी वज़्अ[1] है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन-सी बस्ती के यारब रहने वाले हैं

इलाजे-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ
जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़ाँ से निकाले हैं

फला फूला रहे यारब चमन मेरी उम्मीदों का
जिगर का ख़ून दे दे के ये बूटे मैने पाले हैं

रुलाती है मुझे रातों को ख़ामोशी सितारों की
निराला इश्क़ है मेरा निराले मेरे नाले हैं

न पूछो मुझसे लज़्ज़त ख़ानुमाँ-बरबाद[2] रहने की
नशेमन सैंकड़ों मैंने बनाकर फूँक डाले हैं

नहीं बेग़ानगी[3] अच्छी रफ़ीक़े-राहे-मंज़िल[4] से
ठहर जा ऐ शरर[5] हम भी तो आख़िर मिटने वाले हैं

उमीदे-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-सादे भोले-भाले हैं

मेरे अश्आर ऐ इक़बाल क्यों प्यारे न हों मुझको
मेरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं

शब्दार्थ:
  1. रूप ,आकार, आकृति, रूप-रंग
  2. बेघर
  3. दूरी
  4. सहयात्री
  5. चिंगारी

अक़्ल ने एक दिन ये दिल से कहा

अक़्ल ने एक दिन ये दिल से कहा
भूले-भटके की रहनुमा हूँ मैं

दिल ने सुनकर कहा-ये सब सच है
पर मुझे भी तो देख क्या हूँ मैं

राज़े-हस्ती को तू समझती है
और आँखों से देखता हूँ मैं